वर्तमान समय में प्राकृतिक कृषि समय की मांग : राज्यपाल देवव्रत
राजभवन में प्राकृतिक कृषि विषय पर आयोजित परिसंवाद को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने यह बात कही। देश में हुई हरित क्रांति का उल्लेख करते हुए कहा कि लगभग 60 के दशक में हुए शोध के मुताबिक भारत की जमीन में दो से ढाई फीसदी कार्बन था, जो बेहतरीन उर्वरकता का कारण था। उस समयकाल की आवश्यकता के यूरिया सहित रासायनिक खादों का उपयोग किया जाता था, जो आज भी चल रहा है। इसके चलते आज कार्बन का प्रमाण 0.5 से भी कम रह गया है जिससे जमीन की उर्वरकता घट गई है। जमीन, हवा और पानी प्रदूषित हो गए हैं और विभिन्न रोगों के प्रमाण बढ़ रहे हैं। इन सभी समस्याओं के निराकरण के लिए प्राकृतिक कृषि पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि रासायनिक खेती के उपाय के तौर पर जैविक खेती का विकल्प आया। परंतु जैविक खेती से भी मेहनत और खर्च घटता नहीं है। इतना ही नहीं, उपज घट जाती है और पर्यावरण को भी नुकसान होता है। राज्यपाल ने कहा कि जंगल के पेड़ों को कुदरती तौर पर पोषण मिलता है और वहां किसी भी प्रकार की खाद के बिना फल अपने-आप आ जाते हैं। उसी तरह, प्राकृतिक खेती में भी जीवामृत और घनजीवामृत आधारित कुदरती पद्धतियों के मार्फत खेती पोषक तो बनती ही है। साथ ही किसानों का खर्च भी शून्य हो जाता है।